Blog

बात से बात चले: अभिषेक शुक्ला के साथ एक अदबी गुफ़्तगू

अभिषेक शुक्ला: यह सन् 2004 की बात है विकास भाई.. यहाँ लखनऊ में एक डिबेट कंपटीशन हुआ करता थाएमैंने भी उसमें हिस्सा लिया और मुझे उसमें पहला ईनाम भी मिला मगर मुश्किल यह थी कि ईनाम से ठीक पहले एक मुशायरा रखा गया था और हमारी मजबूरी ये थी कि

बात से बात चले: अभिषेक शुक्ला के साथ एक अदबी गुफ़्तगू Read More »

उर्दू इमला और हम्ज़ा का इस्तेमाल

उर्दू पढ़ने लिखने वालों को या पढ़ना लिखना सिखाने वालों को अगर सबसे ज़ियादः कोई हर्फ़ परेशान कर सकता है तो वो हम्ज़ा है। अव्वल तो इस पर बहसें हैं कि इसे हर्फ़ माना भी जाए या नहीं कि इसकी दूसरे हुरूफ़ की तरह अपनी कोई आवाज़ नहीं है।

उर्दू इमला और हम्ज़ा का इस्तेमाल Read More »

आख़िर लफ़्ज़ कहाँ सुकून का साँस लेते हैं?

कुछ दिन हुए रेख़्ता ब्लॉग पर एक आर्टिकल पढ़ा, “लफ़्ज़ों पर निगरानी रक्खो” नाम से। इस में ग़लती निगरानी, हरकत जैसे अल्फ़ाज़ पर बात की गयी है, असातेज़ा के यहाँ उनका इस्ते’माल किस वज़्न पर हुआ है, इसकी मिसालें भी पेश की गयी हैं। बताया

आख़िर लफ़्ज़ कहाँ सुकून का साँस लेते हैं? Read More »

पण्डित दत्तात्रिया कैफ़ी और बे.दख़्ल किये गए शब्दों की कहानी

मतरूकात दरअस्ल उन अल्फ़ाज़ को कहते हैं जिन्हें शाइरी में पहले बग़ैर किसी पाबन्दी के इस्तेष्माल किया जाता था मगर बाद में मशाहीर और असातेज़ा ने उनका इस्तेष्माल या तो बंद कर दिया या इस्तेष्माल रवा रक्खा भी तो कुछ पाबंदियों के साथ रवा रखा। ये भी

पण्डित दत्तात्रिया कैफ़ी और बे.दख़्ल किये गए शब्दों की कहानी Read More »